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अब UAE से ज्यादा अमेरिका एक्सपोर्ट कर रहा भारत को काला सोना, लिस्ट में आया एक पायदान ऊपर

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इस बढ़ते एनर्जी ट्रेड का संबंध डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की फरवरी में वॉशिंगटन में हुई बातचीत से भी जोड़ा जा रहा है. उस समय दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार असंतुलन को सुधारने पर जोर दिया था.

By : एबीपी बिजनेस डेस्क | Edited By: सुष्मित सिन्हा | Updated at : 16 May 2025 11:29 PM (IST)

भारत के लिए कच्चे तेल की सबसे बड़ी सप्लाई अब सिर्फ मध्य-पूर्व से नहीं, बल्कि अमेरिका से भी तेज़ी से बढ़ रही है. अप्रैल 2025 में, अमेरिका भारत का चौथा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया और इसने इस रैंकिंग में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को पीछे छोड़ दिया है.

एनर्जी कार्गो ट्रैकिंग फर्म Vortexa के आंकड़ों के मुताबिक, भारत की अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद दोगुनी होकर 0.33 मिलियन बैरल प्रतिदिन (mbd) पर पहुंच गई है, जबकि पिछले साल ये आंकड़ा 0.17 mbd था.

ट्रंप-मोदी की बातचीत के बाद आया बदलाव

इस बढ़ते एनर्जी ट्रेड का संबंध डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की फरवरी में वॉशिंगटन में हुई बातचीत से भी जोड़ा जा रहा है. उस समय दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार असंतुलन को सुधारने पर जोर दिया था. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी संकेत दिया था कि भारत की ऊर्जा खरीद अमेरिका से बढ़कर 15 अरब डॉलर से 25 अरब डॉलर तक जा सकती है.

अब भारत को सबसे ज्यादा तेल देता है रूस

हालांकि अमेरिका की मौजूदगी भले ही बढ़ रही है, लेकिन भारत के लिए सबसे बड़ा तेल सप्लायर अब भी रूस है, जिसकी हिस्सेदारी अप्रैल में 37.8 फीसदी रही. इसके बाद इराक (19.1 फीसगी), सऊदी अरब (10.4 फीसदी), और अब अमेरिका (7.3 फीसदी) आते हैं. UAE की हिस्सेदारी 6.4 फीसदी तक गिर गई है, जो पहले चौथे नंबर पर था. एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च में UAE की भारी शिपमेंट के बाद अप्रैल में आपूर्ति थोड़ी कम रही.

अमेरिकी तेल क्यों बढ़ा भारत में? जानिए पीछे की वजह

दरअसल, अमेरिका से भारत में तेल का एक्सपोर्ट इसलिए बढ़ा क्योंकि अमेरिका से यूरोप को भेजे जाने वाले शिपमेंट कम हो गए हैं. यूरोप अब अपने पास के हल्के तेल विकल्पों की ओर देख रहा है और वहां कुछ रिफाइनरियां भी बंद हो गई हैं. नतीजा ये हुआ कि अमेरिका ने अपना फोकस एशिया, खासकर भारत की ओर शिफ्ट कर दिया. अप्रैल में भारत ने अमेरिका के कुल तेल निर्यात का लगभग 8 फीसदी हिस्सा खरीदा.

सऊदी और UAE क्यों पिछड़ रहे हैं?

सऊदी अरब और UAE जैसे पुराने सप्लायर्स की गिरावट का कारण उनकी रणनीतिक शिपमेंट पॉलिसी है. UAE ने मार्च में ज़्यादा तेल भेजा था, इसलिए अप्रैल में थोड़ी कमी आई. इसके अलावा, सऊदी अरब फिलहाल पूर्वी एशिया और यूरोप में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि सऊदी अरब की सप्लाई जल्द लौट सकती है. OPEC+ समूह (जिसमें सऊदी और रूस जैसे 23 देश शामिल हैं) मई और जून में प्रतिदिन 4 लाख बैरल अतिरिक्त उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रहा है. इसका सबसे बड़ा हिस्सा सऊदी अरब से ही आने की उम्मीद है.

ये भी पढ़ें: Gold Price: अमेरिका-चीन की वजह से गिर गए सोने के दाम, क्या 10 ग्राम की कीमत 85 हजार तक जा सकती है?

Published at : 16 May 2025 11:29 PM (IST)

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रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार

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