हिंदी न्यूज़न्यूज़इंडिया'आतंकियों को खाना देना और पनाह गंभीर अपराध', हाई कोर्ट ने दहशतगर्दों के मददगारों पर की टिप्पणी
Delhi High Court: उच्च न्यायालय ने कहा कि लंबे समय तक आतंकवाद को बढ़ावा देना और आतंकवादियों को पनाह देना गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है
By : पीटीआई- भाषा | Edited By: harshitga | Updated at : 21 Feb 2025 07:43 AM (IST)
आतंकियों को पनाह देना अपराध
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Delhi High Court On Terrorism: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि आतंकवादियों को पनाह देने से उनके लिए ‘‘सुरक्षित पनाहगाह’’ बनते हैं और उन्हें ‘‘गोपनीयता का आवरण’’ प्रदान करके नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डाला जाता है. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने 18 फरवरी को यह टिप्पणी की और जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के वहामा निवासी जहूर अहमद पीर को जमानत देने से इनकार कर दिया.
पीर को 2017 में पाकिस्तान से कश्मीर में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों को विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए रसद और अन्य सहायता प्रदान करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उच्च न्यायालय ने कहा कि आतंकवादी संगठनों से जुड़े लोगों को भोजन और सुरक्षित आश्रय प्रदान करना, लंबे समय तक आतंकवाद को बढ़ावा देना और आतंकवादियों को पनाह देना गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है.
पीठ ने कहा, ‘‘आतंकवादियों को पनाह देना गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता, खासकर तब जब यह दावा किया जाता है कि ऐसा दबाव या जबरदस्ती के तहत किया गया है. हालांकि, गहन विश्लेषण से पता चलेगा कि आतंकवादियों को पनाह देना कोई निर्दोष कृत्य नहीं है.’’ अदालत ने कहा कि आतंकवादियों को पनाह देने वाले लोग लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) जैसे संगठनों को समर्थन देते हैं और उन्हें ‘‘गोपनीयता का आवरण’’ प्रदान करते हैं.
'समाज में अशांति फैलती है'
कोर्ट ने कहा, पनाह देने से सामान्य रूप से समाज में अशांति फैलती है और अगर इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इस तरह की गैरकानूनी गतिविधि को वैधता मिल जाती है. NIA के अनुसार भारत में आतंकी हमले करने के लिए पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा साजिश रची गई थी.
आतंकियों को दी पनाह, खिलाया खाना
साजिश के तहत, सह-आरोपी बहादुर अली और उसके दो सहयोगियों अबू साद और अबू दर्दा ने कथित तौर पर जून 2016 में नियंत्रण रेखा पार करके जम्मू-कश्मीर में अवैध रूप से घुसपैठ की थी. स्थानीय पुलिस और सेना द्वारा तलाशी अभियान चलाकर अली को गिरफ्तार कर लिया गया. जांच के दौरान, पीर को सितंबर 2017 में इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था कि उसका अली से सीधा संबंध था और उसने वहामा गांव में रहने के दौरान उसे भोजन और आश्रय में मदद की थी.
पीर ने उसे पनाह देना जारी रखा
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि सह-आरोपी अली एक पाकिस्तानी नागरिक था और वह आतंकवादी कृत्य करने के लिए हथियार और गोला-बारूद के साथ भारत में घुसपैठ करके आया था और मौजूदा साक्ष्यों से पता चलता है कि पीर ने उसे पनाह देना जारी रखा. इसने कहा कि प्राथमिकी और आरोपपत्र में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सत्य हैं.
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Published at : 21 Feb 2025 07:43 AM (IST)
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रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार
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