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क्या अलगाववादियों से रिश्ते सुधारना चाहती है बीजेपी सरकार, जानें क्यों लग रहे ऐसे कयास

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Hurriyat Chief Security: मीरवाइज उमर फारूक के पिता मीरवाइज मोहम्मद फारूक की 21 मई, 1990 को श्रीनगर के नगीन में उनके आवास पर हिज्ब-उल-मुजाहिदीन ने हत्या कर दी थी.

By : आसिफ कुरैशी, एबीपी न्यूज़ | Edited By: abhishek pratap | Updated at : 21 Feb 2025 09:38 PM (IST)

Mirwaiz Umar Farooq Security: लगभग एक दशक तक सुरक्षा एजेंसियों की नजरों में रहने के बाद, क्या कश्मीर में अलगाववादी खेमा मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाता दिख रहा है? यह अटकलें गृह मंत्रालय (एमएचए) की ओर से हुर्रियत के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक के सुरक्षा कवच को बढ़ाए जाने के बाद तेज हो गई हैं.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्रों ने पुष्टि की है कि खतरे की समीक्षा के बाद मीरवाइज को कड़ी सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ की एक टुकड़ी और विशेष बुलेट प्रूफ वाहन मुहैया कराया गया है. मीरवाइज उमर फारूक की सुरक्षा में जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की एक संयुक्त टुकड़ी शामिल थी. 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार के निर्देशों पर एनआईए के अलगाववादी खेमे पर कार्रवाई के बाद घटा दिया गया था. मोदी सरकार के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद 2019 में सुरक्षा कवर पूरी तरह से वापस ले लिया गया था.

आखिर क्यों बढ़ाई गई मीरवाइज उमर की सिक्योरिटी?

अब करीब छह साल बाद, कश्मीर के मीरवाइज उमर फारूक की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. खुफिया जानकारी के अनुसार, हाल ही में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति और कश्मीरी पंडित समूह के साथ बैठक के लिए नई दिल्ली की उनकी यात्रा के बाद उनकी जान को अधिक खतरा है. सीआरपीएफ की टीम पहले ही मीरवाइज की सुरक्षा में शामिल हो चुकी है और शुक्रवार को उन्हें ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति मिलने पर सुरक्षा दी गई.

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गृह मंत्रालय भेजी रिपोर्ट

अलगाववादी समर्थक होने के बावजूद भी मीरवाइज परिवार 1989 से ही आतंकवादियों के निशाने पर रहा है. मीरवाइज उमर फारूक के पिता मीरवाइज मोहम्मद फारूक की 21 मई, 1990 को श्रीनगर के नगीन में उनके आवास पर हिज्ब-उल-मुजाहिदीन ने हत्या कर दी थी. तब से 2019 तक परिवार पुलिस सुरक्षा में था. सूत्रों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने भी अलग से उनके दिल्ली दौरे और वहां उनकी गतिविधियों के बाद उत्पन्न खतरों का सुरक्षा आकलन भी किया और रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी.

अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद पहली बार नई दिल्ली की यात्रा के दौरान, मीरवाइज उमर फारूक ने अन्य धार्मिक नेताओं के साथ मुताहिदा मजलिस-ए-उलेमा के प्रमुख के रूप में जेपीसी को एक ज्ञापन सौंपा था और वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 में प्रस्तावित संशोधनों का कड़ा विरोध किया था.

उन्होंने कश्मीरी पंडितों से भी मुलाकात की, जहां उन्होंने "दर्दनाक पलायन" को स्वीकार करते हुए घाटी में उनकी वापसी का आह्वान किया. मीरवाइज ने कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और कश्मीर की समग्र सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए एक अंतर-समुदाय समिति के गठन की भी घोषणा की थी.

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Published at : 21 Feb 2025 09:38 PM (IST)

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रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार

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