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क्या भारत में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है, ऐसे मामलों में कैसे तय होती है सजा?

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Rhetoric Against Supreme Court: भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ टिप्पणी की है, जो विवाद का विषय है. ऐसे में जान लेते हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है.

By : एबीपी लाइव | Edited By: निधि पाल | Updated at : 20 Apr 2025 12:45 PM (IST)

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर समीक्षा चल रही है. लेकिन बीते शनिवार को न्यायपालिका को लेकर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने जो टिप्पणी की है, वह विवाद का विषय बनी हुई है. निशिकांत दुबे ने कहा सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जाकर फैसले सुना रहा है. वह देश की संसद को दरकिनार कर रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि देश की अदालत का एक ही उद्देश्य है कि चेहरा दिखाओ, कानून बताऊंगा. अगर सभी मामलों में फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही देना है तब संसद और विधानसभाओं को बंद ही कर देना चाहिए. इसके अलावा उन्होंने और भी कई बातें कही हैं. 

ऐसे केसेज में यह जानना जरूरी हो जाता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जाती है तो ऐसे केस में सजा कैसे मिल सकती है. 

हद में रहकर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी

इसका जवाब है हां, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयानबाजी की जा सकती है, लेकिन इसको लेकर कुछ सीमाए हैं. संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है, लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्णं रूप से नहीं है. जैसे कि भड़काऊ भाषण या अपमानजनक बयानबाजी नहीं की जा सकती है. यह कानूनी रूप से प्रतिबंधित है और इसको लेकर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. भारत का संविधान लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर बयानबाजी भी शामिल है.

हो सकती है कानूनी कार्रवाई

हालांकि लोगों को यह स्वतंत्रता पूर्णं रूप से नहीं मिलती है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 19(2) में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं. अगर कोई शख्स सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करता है या फिर सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालता है या फिर किसी समुदाय विशेष के खिलाफ लोगों को भड़काता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अपमानजनक बयान देने पर भी कार्रवाई की जा सकती है. खासतौर से तब जब अदालत की अवमानना हो रही हो या फिर जजों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच रहा हो.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना करना लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन आलोचना उचित और रचनात्मक होनी चाहिए. अगर वह आलोचना अपमानजनक, झूठी या फिर भड़काऊ है तो इसके लिए सजा मिल सकती है. 

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Published at : 20 Apr 2025 12:45 PM (IST)

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रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार

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