हिंदी न्यूज़न्यूज़इंडियाखोजी कुत्ते, गैस कटर, आर्मी-नेवी और 584 लोगों की टीम, 60 घंटे बाद टनल के रेस्क्यू से कितनी उम्मीद?
Telangana Tunnel Rescue: सेना, नौसेना, सिंगरेनी कोलियरीज और अन्य एजेंसियों के 584 कुशल कर्मियों की एक टीम ने NDRF और SDRF के साथ मिलकर सात बार सुरंग का निरीक्षण किया है.
By : पीटीआई- भाषा | Edited By: harshitga | Updated at : 25 Feb 2025 07:37 AM (IST)
तेलंगाना टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन
Telangana Tunnel Collapse: तेलंगाना के नगरकुरनूल जिले में शनिवार (22 फरवरी) की सुबह श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) परियोजना की सुरंग का एक हिस्सा ढहने के बाद से वहां फंसे आठ लोगों के बचने की संभावना अब कम ही दिखाई दे रही है, हालांकि इन कर्मियों तक पहुंचने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. भारतीय सेना, नौसेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) और अन्य एजेंसियों के अथक प्रयासों के बावजूद बचाव अभियान में अब तक कोई सफलता नहीं मिली है.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सेना, नौसेना, सिंगरेनी कोलियरीज और अन्य एजेंसियों के 584 कुशल कर्मियों की एक टीम ने NDRF और SDRF के साथ मिलकर सात बार सुरंग का निरीक्षण किया है. उन्होंने कहा कि मैटल की रॉड को काटने के लिए ‘गैस कटर’ लगातार काम कर रहे हैं. सुरंग के अंदर लोगों का पता लगाने के लिए खोजी कुत्तों को भी लाया गया, लेकिन पानी की मौजूदगी के कारण वे आगे नहीं बढ़ पाए. हालांकि रैट माइनर्स की टीम के पहुंचने के बाद थोड़ी उम्मीद और जगी है.
हादसे पर सियासी जंग
इस घटना को लेकर राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो गया है. भारत राष्ट्र समिति (BRS) के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामा राव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर निशाना साधते हुए कहा कि विधान परिषद के चुनाव प्रचार में सक्रिय रूप से भाग ले रहे मुख्यमंत्री के पास दुर्घटनास्थल पर जाने का समय नहीं है. इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सड़क एवं भवन मंत्री कोमाटिरेड्डी वेंकट रेड्डी ने दावा किया कि विपक्षी नेता सिरसिला नहीं गए, जहां कालेश्वरम परियोजना के कारण सात लोगों की मौत हो गई थी.
लोगों के जीवित बचे होने की संभावना ‘‘बहुत कम’
मंत्री ने कहा कि उनके दो कैबिनेट सहयोगी बचाव कार्यों की देखरेख के लिए सुरंग स्थल पर मौजूद हैं. मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव ने कहा कि सुरंग में फंसे लोगों के जीवित बचे होने की संभावना ‘‘बहुत कम’’ है और उन्हें निकालने में कम से कम तीन से चार दिन लगेंगे, क्योंकि दुर्घटना स्थल कीचड़ और मलबे से भरा है, जिससे बचावकर्मियों के लिए काम कर पाना कठिन हो गया है. उन्होंने यह भी बताया कि 2023 में उत्तराखंड में सिल्क्यारा बेंड-बरकोट सुरंग में फंसे श्रमिकों को बचाने वाले ‘रैट माइनर्स’ की एक टीम एसएलबीसी सुरंग में फंसे लोगों को निकालने के लिए बचाव दलों में शामिल हो गई है.
इंडियन नेवी और आर्मी भी SDRF और NDRF के साथ
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि फंसे हुए लोगों को बचाने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिए. एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और अन्य एजेंसियों के साथ सेना तथा नौसेना बचाव अभियान में शामिल हो गई हैं. कृष्णा राव ने कहा, ‘‘ईमानदारी से कहूं तो उनके बचने की संभावना बहुत कम है. क्योंकि मैं खुद अंत तक गया था, जो (दुर्घटना स्थल से) लगभग 50 मीटर दूर था. जब हमने तस्वीरें लीं तो (सुरंग का) अंत दिखाई दे रहा था और (सुरंग के) 9 मीटर व्यास में से - लगभग 30 फुट, उस 30 फुट में से 25 फुट तक कीचड़ जमा हो गया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब हमने उनका (फंसे हुए लोगों) नाम पुकारा तो कोई जवाब नहीं मिला... इसलिए, ऐसा लगता है कि इसकी (उनके जीवित होने) कोई संभावना नहीं है.’’
कौन-कौन हैं जो सुरंग के भीतर फंसे हुए हैं
पिछले 60 घंटों से सुरंग में फंसे लोगों की पहचान उत्तर प्रदेश के मनोज कुमार और श्रीनिवास, जम्मू कश्मीर के सनी सिंह, पंजाब के गुरप्रीत सिंह और झारखंड के संदीप साहू, जेगता जेस, संतोष साहू और अनुज साहू के रूप में हुई है. इन आठ लोगों में से दो इंजीनियर, दो ऑपरेटर और चार मजदूर हैं. कृष्णा राव ने कहा कि विभिन्न मशीनों की मदद से मलबा हटाने का काम जारी है. उनके अनुसार, ‘सुरंग बोरिंग मशीन’ (टीबीएम), जिसका वजन कुछ सौ टन है, ढहने के बाद और पानी के तेज बहाव के कारण लगभग 200 मीटर दूर तक बह गई.
पानी निकालने का काम तेजी से किया जा रहा
कृष्णा राव ने कहा, ‘‘अगर यह मान भी लिया जाए कि वे (फंसे हुए लोग) टीबीएम मशीन के निचले हिस्से में हैं और अगर यह ऊपर भी सही सलामत हैं तो हवा (ऑक्सीजन) कहां है? नीचे ऑक्सीजन कैसे जाएगी, हालांकि ऑक्सीजन पहुंचाने और पानी निकालने का काम लगातार किया जा रहा है.’’ सड़क एवं भवन मंत्री रेड्डी ने आशा व्यक्त की तथा फंसे हुए आठ लोगों के सफल बचाव के लिए भगवान से प्रार्थना की.
आखिर सुरंग में कैसे फंस गए मजदूर?
हादसे में बचे श्रमिकों ने अपने सहकर्मियों की सुरक्षित वापसी की आशा जताई तथा अपनी आंखों के सामने घटी त्रासदी को याद किया. श्रमिकों में से एक निर्मल साहू ने कहा कि जब वे 22 फरवरी की सुबह सुरंग के अंदर गए तो पानी का बहाव काफी बढ़ गया और मिट्टी भी गिरने लगी. झारखंड के रहने वाले साहू ने बताया कि जिन लोगों को खतरा महसूस हुआ वे सुरक्षित स्थान की ओर भागे लेकिन आठ लोग बाहर नहीं आ सके. फंसे हुए मजदूरों में से एक संदीप साहू के रिश्तेदार ओबी साहू ने बताया कि सुरंग से बाहर निकलते समय कुछ श्रमिकों को मामूली चोटें आईं.
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Published at : 25 Feb 2025 07:26 AM (IST)
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संदीप कुमार सिंह, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयSIS में असिस्टेंट प्रोफेसर
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