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जेनसोल में प्रवर्तक का हिस्सा 96% से घटकर नगण्य हुआ!

प्रवर्तकों की हिस्सेदारी घटी, झूठे खुलासे और व्यापार में हेराफेरी का आरोप, जेनसोल का बाजार मूल्य 90% गिरा

Last Updated- April 18, 2025 | 11:02 PM IST

Gensol Engineering

सितंबर 2019 में आरंभिक सार्वजनिक निर्गम यानी आईपीओ लाने के समय जेनसोल इंजीनियरिंग के प्रवर्तकों की कंपनी में 96 फीसदी हिस्सेदारी थी। लेकिन आज हिस्सेदारी सिकुड़कर काफी कम रह गई है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अंतरिम आदेश के अनुसार, यह नाटकीय गिरावट स्वाभाविक नहीं थी। इसमें झूठे खुलासे, दिखावटी व्यापार और धन के दुरुपयोग जैसे उपाय शामिल हैं। इसका अंतिम परिणाम यह हुआ कि कंपनी के प्रवर्तक तकरीबन बाहर निकलने को हैं और बेखबर निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

इस बारे में जानकारी के लिए कंपनी को ईमेल किया गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया। जेनसोल के 18 करोड़ रुपये के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) को लेकर निवेशकों में बहुत उत्साह नहीं दिखा था और निर्गम को महज 1.3 गुना आवेदन में कुल 23 करोड़ रुपये की बोलियां प्राप्त हुईं थीं। सूचीबद्धता के बाद कंपनी के प्रवर्तक की हिस्सेदारी घटकर 70.72 फीसदी रह गई। जुलाई 2023 में कंपनी के शेयर को एसएमई प्लेटफॉर्म से मेनबोर्ड पर भेज दिया गया, जिससे निवेशकों के व्यापक आधार तक पहुंच मिल गई।

जून 2023 में मेनबोर्ड में जाने से पहले कंपनी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी और भी कम होकर 64.67 फीसदी रह गई। उस समय कंपनी में 2,700 से भी कम व्यक्तिगत शेयरधारक थे, जिनकी सामूहिक हिस्सेदारी 24.85 फीसदी थी। कुल सार्वजनिक शेयरधारकों की संख्या 3,000 से कम थी।

क्लीन टेक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के अग्रणी और जेनसोल के प्रवर्तक अनमोल सिंह जग्गी तथा पुनीत सिंह जग्गी कथित तौर पर एक ऐसी जालसाजी की जिससे सार्वजनिक शेयरधारकों की संख्या बढ़कर लगभग 1,10,000 हो गई। इससे सार्वजनिक शेयरधारिता बढ़कर लगभग 65 फीसदी हो गई और प्रवर्तक का स्वामित्व 35 फीसदी रह गया।

जेनसोल में प्रवर्तक की ताजा हिस्सेदारी का पता नहीं लगाया जा सका। हालांकि बाजार नियामक सेबी द्वारा जारी आदेश के अनुसार प्रवर्तक की हिस्सेदारी 35 फीसदी से और भी कम होकर ‘नगण्य’ हो सकती है क्योंकि इरेडा जैसे ऋणदाता प्रवर्तकों द्वारा ऋण के एवज में गिरवी रखे गए शेयरों को खुले बाजार में बेच रहे हैं।

बीते गुरुवार को जेनसोल का शेयर 118 रुपये पर बंद हुआ जिससे कंपनी का मूल्यांकन 447 करोड़ रुपये रह गया जो इसके 4,300 करोड़ रुपये के उच्चतम मूल्यांकन से लगभग 90 फीसदी कम है।

सेबी ने आदेश में यह भी आरोप लगाया गया है कि कंपनी ने अपना डिफॉल्ट छिपाने के लिए दस्तावेजों में हेराफेरी की। जग्गी बंधुओं ने शेयरों के प्रति निवेशकों का रुझान बढ़ाने के इरादे से स्टॉक एक्सचेंजों को कई भ्रामक खुलासे किए।
उदाहरण के लिए: 16 जनवरी को जेनसोल ने 2,997 इलेक्ट्रिक वाहनों को हस्तांतरित करने और 315 करोड़ रुपये का ऋण लेने के लिए रीफेक्स ग्रीन मोबिलिटी के साथ सौदे की घोषणा की। इस खबर से जेनसोल का शेयर 15 फीसदी उछल गया था। हालांकि यह सौदा 28 मार्च रद्द हो गया।

25 फरवरी को जेनसोल ने अपनी अमेरिकी सहायक कंपनी स्कॉर्पियस ट्रैकर्स इंक की बिक्री से जुड़े 350 करोड़ रुपये के रणनीतिक लेनदेन के लिए एक गैर-बाध्यकारी टर्म शीट का खुलासा किया। सेबी ने इस मूल्यांकन के आधार पर सवाल उठाया, जिसका जेनसोल ने कोई वाजिब जवाब नहीं दिया। जेनसोल से संबंधित इकाई वेलरे सोलर इंडस्ट्रीज ने जेनसोल के शेयरों में सक्रिय रूप से कारोबार किया और महत्त्वपूर्ण लाभ कमाया। जग्गी बंधुओं के पास वेलरे के शेयर अप्रैल 2020 तक रहे, जिसके बाद उन्हें जेनसोल के पूर्व विनियामक मामलों के प्रबंधक ललित सोलंकी को हस्तांतरित कर दिया गया।

सेबी की जांच में जेनसोल और वेलरे के बीच कई ऐसे वित्तीय लेनदेन पाए गए जो वास्तविक वाणिज्यिक गतिविधि से मेल नहीं खाते थे। इससे जेनसोल की आय गलत तरीके से बढ़ाने के प्रयास का संकेत मिलता है। सेबी के अनुसार जेनसोल और उसके प्रवर्तकों या संबंधित इकाइयों ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 67 का उल्लंघन करते हुए जेनसोल के शेयरों में ट्रेडिंग के लिए वेलरे को पैसे दिए थे। आदेश में यह भी कहा गया है कि वेलरे ने इन सौदों से पर्याप्त लाभ कमाया।
जेनसोल ने खुदरा निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एक और रणनीति अपनाई। मार्च में अपनी बोर्ड बैठक के दौरान कंपनी ने 1:10 अनुपात में शेयर विभाजन का प्रस्ताव रखा। इसमें दावा किया गया कि इस कदम से उसके शेयर छोटे निवेशकों के लिए ज्यादा किफायती हो जाएंगे। सेबी ने जेनसोल को इस प्रस्ताव को वापस लेने का निर्देश दिया।

First Published - April 18, 2025 | 11:02 PM IST

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