सरकार 2025 का आम बजट पेश कर चुकी है और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक भी हो चुकी हैं। बाजार के लिए इन दोनों को काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इन दोनों घटनाओं के बाद डेट म्युचुअल फंड (एमएफ) के लिए कैसी स्थिति रहेगी। आइये इस पर विचार करते हैं।
दोहरी घुट्टी
आम बजट से ऋण बाजार के लिए सबसे बड़ी सकारात्मक बात राजकोषीय मजबूती है। साल 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटे का संशोधित अनुमान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.8 फीसदी है, जबकि 2025-26 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.4 फीसदी रहने का अनुमान है।
मिरे ऐसेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के मुख्य निवेश अधिकारी (तय आय) महेंद्र कुमार जाजू ने कहा, ‘सरकार ने अपने अनुमान के अनुरूप राजकोषीय घाटे को काफी कम कर दिया है। उसने आगे भी ऋण बनाम जीडीपी अनुपात को कम करने की भी प्रतिबद्धता जताई है।’
कॉरपोरेट ट्रेनर और लेखक जयदीप सेन ने कहा, ‘अगले साल के लिए राजकोषीय घाटे का अनुमान 4.4 फीसदी है। यह कोविड के दौरान पहले तय किए गए मार्ग के अनुरूप है, जब घाटा काफी बढ़ गया था।’ करीब 5 साल में पहली बार दर में कटौती किए जाने के साथ मौद्रिक नीति में नरमी आई है। क्वांटम ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) के फंड मैनेजर (तय आय) पंकज पाठक ने कहा, ‘आगे दरों में और भी कटौती किए जाने की संभावना है।’
अमेरिकी मुद्रास्फीति
भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्त हो रही रफ्तार को गति देने के लिए दर में कटौती और अनुकूल मौद्रिक नीति की आवश्यकता है। जाजू ने कहा, ‘ट्रंप के शुल्क, भू-राजनीतिक संघर्ष आदि के कारण पैदा हुई वैश्विक अनिश्चितता के बीच अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और राजकोषीय घाटे में इजाफा हो सकता है। ऐसे में आरबीआई को वैश्विक घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।’
अगर अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ती है तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व दर में कटौती को टाल सकता है। उसका असर वैश्विक स्तर पर दिखेगा।
जाजू ने कहा, ‘हालांकि भारत सरकार राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अर्थव्यवस्था में सुधार न होने पर आगे राजकोषीय सहायता की जरूरत हो सकती है।’
दर में कटौती
अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि दर में कटौती चक्र उथला रहेगा, यानी बहुत ज्यादा कटौती की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। जाजू ने कहा, ‘अगर वित्त वर्ष 2026 के लिए मुद्रास्फीति आरबीआई के 4 फीसदी के लक्षित औसत अनुमान पर आ जाती है तो 6.25 फीसदी की रीपो दर के मुकाबले इसका अंतर काफी बढ़ जाएगा। ऐसे में अगले एक साल के दौरान नीतिगत दर में 50-75 आधार अंकों की कटौती की गुंजाइश पैदा होगी।’
मौजूदा रीपो दर अपने दीर्घकालिक औसत के करीब है। ऐसे में पाठक का मानना है कि 25 आधार अंक की एक और कटौती हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘अगर जीडीपी वृद्धि की रफ्तार सुस्त बनी रही तो कटौती 100 आधार अंकों तक पहुंच सकती है।’ सेन का मानना है कि एक या अधिकतम दो वृद्धिशील दर कटौती हो सकती है और प्रत्येक कटौती 25 आधार अंकों की होगी।
लंबी अवधि के फंड
जाजू ने कहा कि अगर नीतिगत दर में 50-75 आधार अंकों की और कटौती की जाती है तो लंबी अवधि के बॉन्ड और फंड में तेजी दिख सकती है। पाठक का मानना है कि सरकारी बॉन्ड में मांग एवं आपूर्ति की स्थिति सकारात्मक होने के कारण लंबी अवधि के यील्ड में गिरावट की आशंका है।
पाठक ने कहा, ‘वित्त वर्ष 2026 के लिए सरकारी बॉन्ड की शुद्ध आपूर्ति स्थिर है लेकिन बीमा कंपनियों, पेंशन फंडों और बैंकों की मांग बढ़ रही है। वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारत के शामिल होने के कारण विदेशी निवेशकों की तरफ से भी मांग बढ़ सकती है।’
लघु अवधि वाले फंड
कुछ फंड मैनेजरों का मानना है कि लघु अवधि वाले फंड आकर्षक हैं। जाजू ने कहा, ‘आज, तीन साल के कॉरपोरेट बॉन्ड पर यील्ड 5 अथवा 10 साल की यील्ड के मुकाबले अधिक है। अगर आरबीआई पर्याप्त तरलता सुनिश्चित करता है और उधारी की रफ्तार सुस्त पड़ जाती है तो कॉरपोरेट बॉन्ड यील्ड कर्व सामान्य हो सकता है। इससे इन फंड को फायदा होगा।’ उन्होंने निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में लंबी अवधि और लघु अवधि वाले फंडों के बीच विविधता लाने का सुझाव दिया।
अन्य मैनेजरों का नजरिया डायनेमिक बॉन्ड फंड के पक्ष में हैं। पाठक ने कहा, ‘अगर आप अपने निवेश को दो से तीन साल तक बरकरार रख सकते हैं तो डायनेमिक बॉन्ड फंड एक अच्छा दांव है। एएए रेटिंग के साथ लघु से मध्यम अवधि वाले बॉन्ड में एक्रुअल लेवल अच्छा है।’ सेन ने निवेशकों को कॉरपोरेट बॉन्ड फंड में निवेश की सलाह दी। उन्होंने कहा, ‘सरकारी प्रतिभूतियों के मुकाबले कॉरपोरेट बॉन्ड पेशकश का दायरा आकर्षक है।’
First Published - March 3, 2025 | 11:05 PM IST
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