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बिहार में कांग्रेस का दिल मांगे मोर, लेकिन RJD की पकड़ नहीं हो रही कमजोर

हिंदी न्यूज़ब्लॉगबिहार में कांग्रेस का दिल मांगे मोर, लेकिन RJD की पकड़ नहीं हो रही कमजोर

आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कांग्रेस की सक्रियता से यह संकेत मिल रहा है कि पार्टी अब राष्ट्रीय जनता दल की छत्रछाया से निकलना चाहती है. नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने कहा है कि गुटबाजी करने वाले नेताओं को पार्टी से बाहर किया जाएगा. बतौर प्रभारी पहली बार पटना पहुंचने पर पार्टी के प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम में कार्यकर्ताओं और नेताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के निर्देशों की चर्चा की. कृष्णा ने स्पष्ट रूप से कहा कि पार्टी के लिए मैदान में दौड़ने एवं लड़ने वालों को सम्मान और ताकत देने में कोई दिक्कत होगी तो सीधे पार्टी नेतृत्व को सूचित किया जाएगा.

कांग्रेस को चाहिए बड़ा हिस्सा

कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए अल्लावरु ने कांग्रेस में अपने संघर्ष की कहानी भी सुनायी. प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने कृष्णा की प्रशंसा करते हुए कहा कि चीजों को परखने की कला इन्हें अन्य लोगों से अलग करती है. उनका मानना है कि नए प्रभारी का प्रबंधन कौशल बिहार कांग्रेस को धारदार बनाएगा. अखिलेश सिंह को पूरा विश्वास है कि 2025 में कांग्रेस की सीट 19 से बढ़ कर 50 हो जाएगी. वे दावा करते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को अधिक-से-अधिक टिकट दिलाएंगे. पार्टी के इस प्रकार के कार्यक्रम से बदलाव की संभावनाओं को बल मिलता है. कांग्रेस बिहार की राजनीति में सिर्फ युवाओं की भागीदारी ही सुनिश्चित नहीं करना चाहती है बल्कि महिलाओं को भी सशक्त करने के लिए अभियान चला रही है.


बिहार में कांग्रेस का दिल मांगे मोर, लेकिन RJD की पकड़ नहीं हो रही कमजोर

राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा ने बिहार में आधी आबादी को बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मुफ्त सेनेटरी नैपकिन बांटने की घोषणा की है. महिला कांग्रेस की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि महिलाओं एवं लड़कियों को संक्रमण के खतरे से बचाने के लिए सेनेटरी नैपकिन का वितरण आवश्यक है.

राह नहीं आसान है कांग्रेस की

1990 के विधानसभा चुनाव में सत्ता खोने के बाद कांग्रेस बिहार में निरंतर कमजोर होती गयी. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही कि कांग्रेस ने उस राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन कर लिया जिसके नेता गांवों-कस्बों में नेहरू परिवार के विरुद्ध विषवमन करते थे. 1989 के लोकसभा चुनाव के पश्चात् जब जनता दल के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह मुल्क के प्रधानमंत्री बने तो उत्तर भारत में कांग्रेस सामाजिक बदलाव को समझने में विफल रही. पराजित प्रधानमंत्री राजीव गांधी सामाजिक ढांचे की जटिलता से अनभिज्ञ थे. इसलिए वे मंडल आयोग की सिफारिशों को लेकर पार्टी का रुख निर्धारित नहीं कर सके. भाजपा उन दिनों देशवासियों को सांस्कृतिक विरासत के महत्व से अवगत कराने के लिए आंदोलनरत थी.

जनता दल की अंदरूनी गुटबाजी से परेशान तत्कालीन प्रधानमंत्री सिंह ने जब अगस्त 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की तो बिहार सहित समस्त उत्तर भारत में जातीय टकराव अपने चरम पर पहुंच गया. कांग्रेस इस आपात स्थिति के लिए तैयार नहीं थी. कांग्रेस समर्थकों पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लग रहा था और यह भ्रम लालू यादव के लिए वरदान साबित हुआ. पटना के गांधी मैदान में लाठी रैली आयोजित करके यादव ने बिहार की राजनीति में अपने लिए जगह सुरक्षित कर ली. वे धर्मनिरपेक्षता व सामाजिक न्याय के प्रहरी मान लिए गए. जनसभाओं में जब लालू कांग्रेस को ब्राह्मणों की पार्टी सिद्ध करते थे तो तालियां खूब बजती थी.

नरसिम्हा राव के समय से बिहार कांग्रेस की प्राथमिकता नहीं

1991 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार तो बनी, लेकिन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की प्राथमिकता सूची में बिहार के लिए कोई जगह नहीं थी. इसलिए यहां कांग्रेस को मजबूती प्रदान करने के लिए कोशिशें नहीं हुईं और प्रदेश स्तर के नेता अपना भविष्य राजद के साथ गठबंधन में ढूंढने लगे. यादवों एवं मुसलमानों की राजनीतिक एकजुटता से लालू परिवार लाभान्वित होता रहा और इस समीकरण के विरुद्ध उपजी प्रतिक्रिया ने भाजपा व जद(यू) की झोली वोटों से भर दी. 2005 से बिहार की सत्ता पर एनडीए काबिज है. हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक मौसम का मिजाज देख कर गठबंधन बदलने के लिए ख्याति प्राप्त कर चुके हैं. कुमार अपनी सोशल इंजीनियरिंग के बलबूते बिहार के लिए इतने अपरिहार्य हो गए हैं कि कोई भी राजनीतिक दल उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता. 2020 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) संख्या बल के मामले में तीसरे नंबर पर थी, इसके बावजूद भाजपा बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए का नेता मानती है. वे राष्ट्रीय जनता दल के लिए भी स्वीकार्य रहे हैं. तेजस्वी यादव उनके साथ दो बार उपमुख्यमंत्री के रूप में काम करने का अनुभव हासिल कर चुके हैं. 

सामाजिक पहचान की राजनीति का ही यह प्रभाव है कि यहां जातियां ही नहीं उपजातियां भी सत्ता में अपनी हिस्सेदारी चाहतीं हैं. हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता व केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी एससी आरक्षण में उपवर्गीकरण की मांग कर चुके हैं. सामाजिक ढांचे में हस्तक्षेप के कारण ही मांझी, चिराग पासवान एवं उपेंद्र कुशवाहा राज्य की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाये हुए हैं.

बिहार की जटिल 'जातिकी' और कांग्रेस

राज्य की जटिल सामाजिक-राजनीतिक संरचना में कांग्रेस की जमीन को विस्तार देने के लिए अलका लांबा के "कल्याणकारी कार्यों" का कितना असर होगा, कहना मुश्किल है. महिलाओं के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए उन्होंने कहा है कि कांग्रेस सत्ता में आने के बाद पूरे राज्य के हरेक कस्बे में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन स्थापित करेगी. फिलहाल राज्य में कांग्रेस के निर्वाचित विधायकों के विधानसभा क्षेत्र से इसकी शुरुआत होगी. लांबा ने कहा कि पहली वेंडिंग मशीन विधायक प्रतिभा दास के विधानसभा क्षेत्र राजापाकर में स्थापित होगी. मिशन बिहार को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए विधानसभा चुनाव होने तक राष्ट्रीय महिला कांग्रेस का मुख्यालय भी पटना से काम करेगा. कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है. स्वतंत्रता संग्राम में इसकी भूमिका तो महत्वपूर्ण रही ही है, साथ ही मुल्क के चंहुमुखी विकास में भी इसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में कामयाबी के लिए दीर्घकालिक योजना बनाने की जरूरत है. खड़गे, राहुल व प्रियंका गांधी को उस मिथिलांचल के गांवों में जाना चाहिए जहां लोग आँखें मूंद कांग्रेस को अपना वोट देते थे. कांग्रेस के लिए चुनौती भाजपा नहीं, बल्कि राजद का जातीय समीकरण है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

Published at : 23 Feb 2025 12:10 PM (IST)

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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक

प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक

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