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मां गंगा का 'सिक्योरिटी गार्ड' कौन, हमेशा पवित्र क्यों बना रहता है गंगाजल? एक्सपर्ट ने बताया

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गंगा की विशेष क्षमता प्रकृति का संदेश देती है. गंगा अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखती है वैसे ही मानव को प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए, नहीं तो प्रकृति अपने बचाव में कठोर कदम उठा सकती है.

By : अवधेश कुमार मिश्र | Edited By: Santosh Singh | Updated at : 22 Feb 2025 05:15 PM (IST)

प्रयागराज महाकुंभ में अब तक 60 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा में पवित्र डुबकी लगा चुके हैं. इसके बावजूद गंगा जल पूरी तरह से रोगाणुमुक्त है. गंगा नदी की अपनी अद्भुत स्व-शुद्धिकरण क्षमता इस खतरे को तुरंत टाल देती है. इसका रहस्य गंगा में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज हैं, जो प्राकृतिक रूप से गंगा जल की सुरक्षा का कार्य करते हैं. ये अपनी संख्या से 50 गुना रोगाणुओं को मारकर उसका आरएनए तक बदल देते हैं. गंगा दुनिया की इकलौती मीठे जल वाली नदी है, जिसमें एक साथ इतने बैक्टीरिया मारने की अद्भुत ताकत है. मानवजनित सभी प्रदूषण को नष्ट करने के लिए इसमें 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज मौजूद हैं.

मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम भी जिस वैज्ञानिक का लोहा मानते रहे, उन्हीं पद्मश्री डॉक्टर अजय सोनकर ने महाकुंभ में गंगा जल को लेकर अब सबसे बड़ा खुलासा किया है.

मां गंगा का सिक्योरिटी गार्ड
दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा मैया की ताकत समुद्री जल के समान है. इसमें पाया जाने वाला बैक्टीरियोफेज प्रदूषण और हानिकारक बैक्टीरिया का समूल नाश कर खुद भी विलुप्त हो जाता है. गंगा जल में पाए जाने वाले रोगाणुओं का पल भर में ही संहार करने की अद्भुत क्षमता के कारण ही इसे मां गंगा का सिक्योरिटी गार्ड भी कहा जाता है. डॉ. सोनकर ने पूरी दुनिया में कैंसर, डीएनए-बायोलॉजिकल जेनेटिक कोड, सेल बायलॉजी एंड ऑटोफैगी पर बड़े महत्वपूर्ण शोध किए हैं. 

1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज मौजूद
पद्मश्री डॉक्टर अजय सोनकर के अनुसार गंगा जल में 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज मौजूद हैं, जो विशेष रूप से हानिकारक बैक्टीरिया को पहचानकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. ठीक वैसे ही जैसे सिक्योरिटी गार्ड अनधिकृत प्रवेश करने वाले को रोक देता है.

50 गुना ताकतवर वायरस
बैक्टीरियोफेज, बैक्टीरिया से 50 गुना छोटे होते हैं, लेकिन उनकी ताकत अद्भुत होती है. वे बैक्टीरिया के अंदर जाकर उनका आरएनए हैक कर लेते हैं. इसके बाद उन्हें खत्म कर देते हैं.

स्नान के दौरान होती है विशेष प्रक्रिया
महाकुम्भ के दौरान जब लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं. तब शरीर से निकलने वाले रोगाणुओं को गंगा खतरा समझती है. तत्काल प्रभाव से बैक्टीरियोफेज सक्रिय हो जाते हैं.

1100 प्रजातियों के बैक्टीरियोफेज करते हैं सफाई
गंगा में पाए जाने वाले 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज विभिन्न प्रकार के रोगाणुओं को पहचानते हैं और उन्हें खत्म करते हैं. एक बैक्टीरियोफेज कुछ ही समय में 100-300 नए फेज उत्पन्न करता है, जो अन्य बैक्टीरिया पर हमला कर उन्हें नष्ट करते हैं.

जैविक अस्त्र की तरह काम करते हैं बैक्टीरियोफेज
ये होस्ट स्पेसिफिक होते हैं. यानी यह केवल उन जीवाणुओं को खत्म करते हैं जो स्नान के दौरान पानी में प्रवेश करते हैं गंगा जल में होने वाली यह प्रक्रिया समुद्री जल की स्वच्छता प्रणाली के समान है, जिसे ओशनिक एक्टिविटी कहा जाता है.

मेडिकल साइंस में भी कर सकते हैं इस्तेमाल
पद्मश्री डॉक्टर अजय सोनकर बताते हैं कि बैक्टीरियोफेज का चिकित्सा क्षेत्र में भी उपयोग किया जा सकता है. जहां केवल नुकसानदायक जीवाणु को निशाना बनाया जा सकता है, बिना अच्छे जीवाणुओं को नुकसान पहुंचाए.

गंगा की यह विशेष क्षमता प्रकृति का संदेश देती है
डॉक्टर सोनकर के अनुसार गंगा की यह विशेष क्षमता प्रकृति का संदेश देती है, जैसे वह अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखती है, वैसे ही मानव को भी प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए अन्यथा यही प्रकृति अपने बचाव में कठोर कदम उठा सकती है.

कौन हैं ये डॉक्टर अजय, जिन्होंने गंगा जल को लेकर की इतनी बड़ी खोज
डॉक्टर अजय भारत के वो वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपने अनुसंधान से समुद्र में मोती बनाने की विधा में जापान के एकाधिकार को न सिर्फ समाप्त कर दिया बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा और बहुमूल्य मोती बना कर पूरी एक ग्लोबल वेव पैदा कर दी थी. डॉ. अजय ने नीदरलैंड की वेगेनिंगन यूनिवर्सिटी से कैंसर और न्यूट्रिशियन पर बड़ा काम किया है. इसके अलावा न्यूट्रिशियन, हार्ट की बीमारियों और डायबिटीज पर भी इनका रिसर्च है. राइस यूनिवर्सिटी, ह्यूस्टन अमेरिका से डीएनए को लेकर बायोलॉजिकल जेनेटिक कोड पर इनके काम को पूरा अमेरिका सम्मान की दृष्टि से देखता है. 2016 के नोबेल विजेता जापानी वैज्ञानिक डॉ. योशिनोरी ओहसुमी के साथ टोक्यो इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से सेल बायलॉजी एंड ऑटोफैगी पर खूब काम किया है. इसके अलावा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से कॉग्निटिव फिटनेस और सेंसिटिव गट्स पर दो बार काम कर चुके हैं. 2004 में डॉ. अजय को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के जे. सी बोस इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंस में लाइफ टाइम प्रोफेसर अपॉइंट किया गया. इससे पहले 2000 में पूर्वांचल यूनिवर्सिटी डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से सम्मानित कर चुकी है.

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Published at : 22 Feb 2025 05:15 PM (IST)

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