हिंदी न्यूज़फोटो गैलरीविश्वHajj 2025: हज यात्रा के दूसरे दिन का क्या है महत्व? किसे कहते हैं वुक़ूफ-ए-अराफात, जानें जरूरी बात
हज के दूसरे दिन वुकूफ ए अराफात में दुआ और इबादत का विशेष महत्व होता है. यह हज के लिए अनिवार्य है, जिसे किए बिना हज अधूरा माना जाता है. जानिए अराफात और मुजदलिफा के रिवाजों का आध्यात्मिक पक्ष.
By : एबीपी लाइव | Updated at : 05 Jun 2025 02:11 PM (IST)
अराफात का मैदान जहां एक ओर पैगंबर की आखिरी तकरीर का साक्षी रहा, वहीं आज भी वह करोड़ों दिलों के सच्चे इरादों की गवाही देता है.
हज यात्रा का दूसरा दिन, जिसे वुक़ूफ-ए-अराफात कहा जाता है. ये हज का सबसे महत्वपूर्ण रिवाज माना जाता है. अगर कोई हाजी इस दिन मैदान-ए-अराफात में उपस्थित नहीं होता तो उसका हज अधूरा और अमान्य माना जाता है.
वुक़ूफ-ए-अराफात के दिन मक्का से लगभग 20 किमी दूर स्थित अराफात के मैदान में दोपहर से सूर्यास्त तक पहुंचते हैं लोग. इस दौरान लाखों हाजी दुनिया की हर भाषा में हर दिल से अल्लाह से अपनी गलतियों की माफी मांगते हैं.
अराफात के मैदान में ही पैगंबर मोहम्मद (सल्ल.) ने 632 ईस्वी में अपनी आखिरी खुत्बा (तकरीर) दी थी, जिसे खुत्बा-ए-हज्जतुल विदा कहा जाता है. यह तकरीर मानवाधिकारों, समानता, नारी-सम्मान और न्याय का मूल मंत्र मानी जाती है.
अराफात से चलते हैं मिना के रास्ते मुजदलिफा की ओर जातें हैं. वहीं खुले आसमान के नीचे रात बिताते हैं, जो पूरी विनम्रता, साधना और समर्पण का प्रतीक है.
हाजी यहीं से 49 या 70 कंकड़ (पत्थर) जमा करते हैं. इन पत्थरों का उपयोग अगले दिन रमी-जमरात के लिए किया जाएगा, जहां प्रतीकात्मक रूप से शैतान पर कंकड़ मारे जाते हैं. पत्थरों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि हाजी मिना में एक दिन रुकेंगे या तीन दिन. प्रतीक है.
हज का दूसरा दिन, जिसमें अराफात की उपस्थिति और मुजदलिफा की रात शामिल है, मानव आत्मा और परमात्मा के बीच सबसे करीबी संवाद का प्रतीक है.
सऊदी अरब के हज मंत्रालय और कई देशों की सरकारों ने भीड़ को कंट्रोल करने के लिए नियम बनाया है कि एक इंसान पांच साल में सिर्फ एक बार हज कर सकता है.
सऊदी अरब में रहने वाले लोगों पर 5 साल का नियम उतनी सख्ती से लागू नहीं होता है, लेकिन उन्हें भी हज के लिए आधिकारिक परमिशन लेनी होती है.
Published at : 05 Jun 2025 02:11 PM (IST)
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