हिंदी न्यूज़लाइफस्टाइलधर्मJyeshtha Purnima 2025 Vrat Katha: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर सुहागिन महिलाएं जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी हर कामना
Jyeshtha Purnima 2025 Vrat Katha: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर सुहागिन महिलाएं वट पूर्णिमा (Vat Purnima) व्रत रखती हैं. मान्यता है कि ज्येष्ठ पूर्णिमा पर ही सावित्री को यमराज ने उसके पति के प्राण वापिस किए थे.
By : पल्लवी कुमारी | Updated at : 10 Jun 2025 08:24 AM (IST)
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2025
Source : abp live
Jyeshtha Purnima 2025 Vrat Katha in Hindi: ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि को हिंदू धर्म में बहुत ही विशेष माना जाता है. धार्मिक दृष्टि से इस तिथि पर स्नान, दान, व्रत और सत्यनारायण पूजा (Satyanarayan Puja) का महत्व होता है. ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी और अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि इस दिन वट पूर्णिमा का व्रत भी रखा जाता है, जोकि वट सावित्री व्रत के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है.
बता दें कि इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा बुधवार 11 जून 2025 को है. इसी दिन स्नान-दान और पूजा-पाठ जैसे धार्मिक कार्य किए जाएंगे और महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए वट पूर्णिमा का व्रत रखेंगी. धार्मिक मान्यता के अनुसर ज्येष्ठ पूर्णिमा ही वह तिथि है जब सावित्री ने अपनी पतिव्रता धर्म, पवित्रता और भक्ति का परिचय दिया, जिसके बाद यमराज ने उसके मृत पति सत्यवान के प्राण वापिस कर उसे पुनर्जीवित कर दिया था.
इस दिन सुहागिन महिलाएं सावित्री, सत्यावान, नारद, वट वृक्ष, यमराज और ब्रह्मा की पूजा करती हैं और अखंड सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं. यहां पढ़ें ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा व्रत की संपूर्ण कथा (Vat Purnima Vrat Katha).
पौराणिक व धार्मिक कथा के अनुसार, सावित्री जोकि राजा अश्वपति की पुत्री और एक राजकुमारी थी. वह बुद्धिमान, साहसी और धर्मपरायण थी. सावित्री ने तपस्वी जीवन जीने वाले सत्यावान को अपने पति के रूप में चुना. तभी एक दिन नारद मुनि प्रकट हुए और उन्होंने सावित्री को बताया कि सत्यावान अल्पायु है. इसलिए वह विवाह के लिए कोई और वर की तलाश करे. लेकिन सावित्री मन ही मन सत्यवान को अपना वर मान चुकी थी और इसलिए वह अपने निर्णय पर अड़िग रही. आखिरकार सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ.
सत्यवान और ससुराल वालों के साथ सावित्री विवाह के बाद एक वन में रहने लगी. धीरे-धीरे सत्यवान की मृत्यु का समय भी नजदीक आने लगा. एक दिन जब सत्यवान लकड़ियां काटने जंगल गया था, तभी अचानक उसे सिर में दर्द हुआ और मूर्छित होकर वहीं गिर पड़ा. सावित्री पति के सिर को अपने गोद में रखकर सहलाने लगी. तभी वहां यमराज प्रकट हुए और सत्यवान की आत्मा लेकर जाने लग. सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगी. यमराज ने सावित्री को बहुत रोका लेकिन वह नहीं मानी.
जब सावित्री की चालाकी से हार गए मृत्यु देव यमराज
सावित्री ने यमराज से कई बार विनती की और पतिव्रता होने का परिचय दिया. सावित्री के मुख से धर्म की बातें सुनकर यमराज ने भी हार मान ली. आखिरकार यमराज ने कहा मैं तुम्हारे पति के प्राण तो वापिस नहीं कर सकता, लेकिन तुम मुझसे तीन वरदान मांग सकती हो. सावित्री ने पहले वरदान में ससुराल वालों का खोया हुआ राज्य वापस मांगा, दूसरे वरदान में नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की रोशनी मांगी और तीसरे वरदान में सौ पुत्रों की मां होने का वर मांगा. यमराज ने तीनों वरदान सुनकर तथास्तु कह दिया.
सावित्री ने यमराज से कहा कि आपने मुझे सौ पुत्री की मां होने का वरदान दिया है जोकि सत्यवान के बिना संभव नहीं है और मैं एक पतिव्रता स्त्री हूं. आखिरकार वचन में बंध जाने के कारण यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े. सावित्री तुरंत दौड़कर बरगद पेड़ के पास गई जहां सत्यावन मूर्छित पड़े थे. लेकिन सावित्री ने देखा कि वरदान के बाद सत्यवान जीवित हो गए थे.
सावित्री की बुद्धिमानी से पुनर्जीवित हुए सत्यवान
इस तरह सावित्री की बुद्धिमत्ता, प्रेम और तप से न सिर्फ सत्यवान को नया जीवन मिला, बल्कि उसके सास-ससुर के आंखों की रोशनी भी लौट आई और खोया हुआ राज पाट भी मिल गया था. कहा जाता है कि जिस दिन सत्यवान पुनर्जीवित हुए, उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन था. इसलिए वट पूर्णामा के 15 दिन बाद सुहागिन महिलाएं वट पूर्णिमा का भी व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं.
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Published at : 10 Jun 2025 08:24 AM (IST)
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