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Kedarnath Dham: 5 शिवशक्ति पीठों में श्रेष्ठ है केदारनाथ हिमवत वैराग्य पीठ, पिंडदान और तर्पण का है महत्व

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Kedarnath Dham: भारत में शिवशक्ति के 5 प्रमुख पीठ माने जाते हैं, जिनमें केदारनाथ स्थित हिमवत वैराग्य पीठ सर्वोच्च है. इसका विशेष स्थान इसलिए है क्योंकि इसे भक्ति, तप और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है.

By : दानिश खान  | Updated at : 04 May 2025 10:24 AM (IST)

 भारत में शिवशक्ति के 5 प्रमुख पीठ माने जाते हैं, जिनमें केदारनाथ स्थित हिमवत वैराग्य पीठ सर्वोच्च है. इसका विशेष स्थान इसलिए है क्योंकि इसे भक्ति, तप और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है.

केदारनाथ हिमावत वैराग्य पीठ

भारतवर्ष की पवित्र धार्मिक परंपराओं में केदारनाथ धाम का विशेष स्थान है. उत्तराखंड की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में समुद्रतल से 11,750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ न केवल बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल है, बल्कि इसे शिवशक्ति के पांच प्रमुख पीठों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इसे हिमवत वैराग्य पीठ कहा जाता है, जहां पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है.

भारतवर्ष की पवित्र धार्मिक परंपराओं में केदारनाथ धाम का विशेष स्थान है. उत्तराखंड की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं में समुद्रतल से 11,750 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ न केवल बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल है, बल्कि इसे शिवशक्ति के पांच प्रमुख पीठों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इसे हिमवत वैराग्य पीठ कहा जाता है, जहां पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है.

केदारनाथ धाम में भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा होती है. धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद अपने गोत्र व गुरु हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण ली थी. शिव उनसे रुष्ट होकर केदारखंड में भैंसे का रूप धारण कर भूमिगत होने लगे, लेकिन भीम ने भैंसे की पूंछ पकड़ ली. इसी दौरान पृष्ठ भाग भूमि से बाहर रह गया, जो आज केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है.

केदारनाथ धाम में भगवान आशुतोष के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा होती है. धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद अपने गोत्र व गुरु हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण ली थी. शिव उनसे रुष्ट होकर केदारखंड में भैंसे का रूप धारण कर भूमिगत होने लगे, लेकिन भीम ने भैंसे की पूंछ पकड़ ली. इसी दौरान पृष्ठ भाग भूमि से बाहर रह गया, जो आज केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है.

पिंडदान और तर्पण के लिए केदारनाथ को अत्यंत पुण्यस्थल माना गया है. यहां आने वाले भक्त अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए जल, दूध, घी और चंदन से भगवान शिव के लिंग का अभिषेक करते हैं. यह विश्वास है कि जब तक स्वयंभू लिंग पर भक्त घी, चंदन व मक्खन का लेपन नहीं करता, तब तक पूजा अधूरी मानी जाती है.

पिंडदान और तर्पण के लिए केदारनाथ को अत्यंत पुण्यस्थल माना गया है. यहां आने वाले भक्त अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए जल, दूध, घी और चंदन से भगवान शिव के लिंग का अभिषेक करते हैं. यह विश्वास है कि जब तक स्वयंभू लिंग पर भक्त घी, चंदन व मक्खन का लेपन नहीं करता, तब तक पूजा अधूरी मानी जाती है.

केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती बताते हैं कि यहां भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है. बाबा के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है और आत्मिक शांति की अनुभूति होती है. यही कारण है कि देश-विदेश से हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

केदारनाथ के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती बताते हैं कि यहां भक्त और भगवान का सीधा मिलन होता है. बाबा के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है और आत्मिक शांति की अनुभूति होती है. यही कारण है कि देश-विदेश से हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

पौराणिक मान्यता के अनुसार, केदारनाथ क्षेत्र मेरू और सुमेरू पर्वत की तलहटी में बसा है. यह मंदाकिनी, मधु गंगा, दुग्ध गंगा, सरस्वती और स्वर्ग गौरी जैसी पवित्र जलधाराओं की भूमि है. मंदिर के चारों ओर उदक कुंड, रेतस कुंड, अमृत कुंड, हंस कुंड और हवन कुंड हैं. हालांकि आपदा के बाद हंस और हवन कुंड का पता नहीं चल पाया है.

पौराणिक मान्यता के अनुसार, केदारनाथ क्षेत्र मेरू और सुमेरू पर्वत की तलहटी में बसा है. यह मंदाकिनी, मधु गंगा, दुग्ध गंगा, सरस्वती और स्वर्ग गौरी जैसी पवित्र जलधाराओं की भूमि है. मंदिर के चारों ओर उदक कुंड, रेतस कुंड, अमृत कुंड, हंस कुंड और हवन कुंड हैं. हालांकि आपदा के बाद हंस और हवन कुंड का पता नहीं चल पाया है.

आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं सदी में इस मंदिर का पुनरोद्धार किया था. उन्होंने केदारनाथ को वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया। मंदिर प्रांगण में स्थित उनका समाधि स्थल आज भी श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.

आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वीं सदी में इस मंदिर का पुनरोद्धार किया था. उन्होंने केदारनाथ को वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया। मंदिर प्रांगण में स्थित उनका समाधि स्थल आज भी श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.

भारत में शिवशक्ति के पांच प्रमुख पीठ माने जाते हैं, जिनमें केदारनाथ स्थित हिमवत वैराग्य पीठ सर्वोच्च है. इनके साथ श्रीशैल सूर्य पीठ (आंध्र प्रदेश), ज्ञानपीठ (काशी), वीर पीठ (कर्नाटक) और सधर्म पीठ (उज्जैन) का नाम आता है. इन सभी पीठों में केदारनाथ को विशेष स्थान इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह भक्ति, तप और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है.

भारत में शिवशक्ति के पांच प्रमुख पीठ माने जाते हैं, जिनमें केदारनाथ स्थित हिमवत वैराग्य पीठ सर्वोच्च है. इनके साथ श्रीशैल सूर्य पीठ (आंध्र प्रदेश), ज्ञानपीठ (काशी), वीर पीठ (कर्नाटक) और सधर्म पीठ (उज्जैन) का नाम आता है. इन सभी पीठों में केदारनाथ को विशेष स्थान इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह भक्ति, तप और वैराग्य का प्रतीक माना जाता है.

हिमालय की गोद में स्थित यह पावन धाम केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा का द्वार है, जहां शिव के दर्शन से जीवन का उद्देश्य पूर्ण होता है. पिंडदान, तर्पण और दर्शन की यह परंपरा केदारनाथ को न केवल आध्यात्मिक रूप से महान बनाती है, बल्कि भारत की धार्मिक विरासत का गौरव भी बढ़ाती है.

हिमालय की गोद में स्थित यह पावन धाम केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा का द्वार है, जहां शिव के दर्शन से जीवन का उद्देश्य पूर्ण होता है. पिंडदान, तर्पण और दर्शन की यह परंपरा केदारनाथ को न केवल आध्यात्मिक रूप से महान बनाती है, बल्कि भारत की धार्मिक विरासत का गौरव भी बढ़ाती है.

Published at : 04 May 2025 10:21 AM (IST)

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