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RBI MPC Rate Cut से बैंकिंग, रियल्टी, ऑटो शेयरों में 2% तक की तेजी, एक्सपर्ट्स से जानें किन सेक्टर्स में आयेगा बूम

Marcellus Investment Managers के वीआर कृष्णन ने कहा कि भारत में ऑटो की अधिकांश खरीदारी लोन पर होती हैं। इसलिए दरों में कटौती होने से ऑटोमेकर्स को फायदा हो सकता है

RBI MPC Meeting : बैंकिंग, एनएफबीसी और ऑटो काउंटर जैसे रेट सेंसेटिव शेयरों में तेज बढ़त के साथ कारोबार हुआ। भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनटेरी पॉलिसी समिति ने शुक्रवार, 6 जून को बाजार की उम्मीदों के मुताबिक प्रमुख लेंडिंग रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की। आरबीआई ने भी अपना रुख पहले के 'एकोमोडिटिव' से बदलकर 'न्यूट्रल' कर दिया। निवेशकों ने उधार लेने की लागत को कम करने पर दांव लगाया। इससे हाउसिंग और ऑटो प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ेगी। जिससे ऋणदाताओं, चाहे बैंक हों या गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, इन सभी के मुनाफे में सुधार होगा। अप्रैल की बैठक के दौरान, आरबीआई एमपीसी ने लेंडिंग रेट को 25 बेसिस प्वाइंट्स घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया। इसके पहले ये रेट 6.25 प्रतिशत था। आरबीआई ने लगातार दूसरी दर कटौती की है। वहीं 50 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती के साथ, रेपो दर 5.5 प्रतिशत पर आ गई है।

इसके अलावा, RBI द्वारा CRR, जिसे cash reserve ratio (नकद आरक्षित अनुपात) के रूप में भी जाना जाता है, में 100 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है। इससे बैंकिंग शेयरों को बढ़ावा मिला। CRR में कटौती इस साल 25 बेसिस प्वाइंट्स की चार किश्तों में होगी जो 6 सितंबर, 4 अक्टूबर, 1 नवंबर और 29 नवंबर को होगी।

सेक्टोरल इंडेक्सेस में दिखी तेजी

सुबह 10.10 बजे, बैंक निफ्टी और निफ्टी प्राइवेट बैंक इंडेक्स में तेजी देखने को मिली। जबकि निफ्टी पीएसयू बैंक में एक प्रतिशत का उछाल आया। निफ्टी रियल्टी इंडेक्स में कारोबार के दौरान दो प्रतिशत की तेजी आई। निफ्टी ऑटो इंडेक्स में 0.3 प्रतिशत की तेजी आई।

घोषणा से पहले, एक्सपर्ट्स ने कहा था कि 25 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती से इक्विटी बाजारों में बहुत अधिक बदलाव की संभावना नहीं है। इसकी वजह ये है कि रेपो दर या नीतिगत रुख में कोई बड़ा आश्चर्य होने की उम्मीद नहीं है। इसके बजाय, शेयरों पर नतीजों और वैश्विक संकेतों का असर पड़ने की संभावना है।

एक्सपर्ट्स ने इन सेक्टर्स पर दी दांव लगाने की सलाह

Omniscience Capital के संस्थापक और सीईओ विकास गुप्ता ने कहा था कि 25 बेसिस प्वाइंट्स से अधिक की दर में कटौती या मजबूत नरम रुख से बाजार में अच्छा रिएक्शन देखने को मिल सकता है। उन्होंने इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को फायदा होने की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा "औद्योगिक/कॉर्पोरेट कैपेक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए, कम ब्याज दरें होने से अधिक प्रोजेक्ट्स सामने आते हैं। इससे लोन डिमांड में वृद्धि होती है।"

रेपो रेट लोन की लागत पर असर डालती है। रेपो रेट में कटौती से लोन और खर्च को बढ़ावा मिलता है, विकास को बढ़ावा मिलता है और आम तौर पर बाजार के सेंटीमेंट्स को सपोर्ट मिलता है। Marcellus Investment Managers के वीआर कृष्णन ने कहा, "दर में 25 बीपीएस की कटौती आम तौर पर डिस्क्रेशनरी कंजम्प्शन को सपोर्ट करती है।"

उन्होंने कहा कि भारत में ऑटो की अधिकांश खरीदारी लोन पर होती हैं। इसलिए कम दरें होने से ऑटोमेकर्स की मदद होती हैं। "घरेलू कर्ज बढ़ने के साथ, दरें कम होने से ब्याज लागत कम हो जाती है और डिस्पोजेबल आय को बढ़ती हैं, जिससे कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी शेयरों को लाभ होता है।"

बैंकिंग पक्ष पर, उन्होंने कहा, "कई मॉर्गेजेज रेपो-लिंक्ड हैं, इसलिए इसका फायदा कर्जदारों तक जल्दी पहुंचता है। लेकिन मजबूत रिटेल और CASA प्रतिस्पर्धा के कारण बैंक डिपॉजिट रेट्स को कम करने के लिए संघर्ष कर सकते हैं, संभावित रूप से शुद्ध ब्याज मार्जिन को कम कर सकते हैं।"

(डिस्क्लेमरः Moneycontrol.com पर दिए जाने वाले विचार और निवेश सलाह निवेश विशेषज्ञों के अपने निजी विचार और राय होते हैं। Moneycontrol यूजर्स को सलाह देता है कि वह कोई निवेश निर्णय लेने के पहले सर्टिफाइड एक्सपर्ट से सलाह लें।)

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