हिंदी न्यूज़न्यूज़इंडियाक्यों लगती है जंगलों में आग? 20 सालों में भारत के जंगलों में आग की घटनाएं 10 गुना तक बढ़ीं
भारत में लगभग 10.66% वन क्षेत्र आग जनित घटनाओं के दायरे में आता है. आग से 952 हेक्टेयर वन नष्ट हो गया, जबकि अन्य कारणों से 3,230 हेक्टेयर वन क्षतिग्रस्त हो गया. 2023 में, 112 हेक्टेयर वन नष्ट हो गया.
By : मानस मिश्र | Updated at : 23 Feb 2025 08:27 AM (IST)
जंगलों में आग की घटनाएं हर साल होती हैं
जंगलों में आग लग जाने की घटना भारत में गंभीर चुनौती बन रही है. ऐसी आगजनी पर्यावरण के लिहाज से भी काफी नुकसान पहुंचाती हैं. बीते 20 सालों में भारत के जंगली इलाकों में 1.12 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन आग लगने की घटनाओं में 10 गुना इजाफा हुआ है. ये आंकड़ा न सिर्फ पर्यावरण के हिसाब से, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर संकट बनकर उभरा है. अनुमान है कि भारत के 36 फीसदी जंगली इलाकों में आग लगने की आशंका है, जिसके हर साल 1.74 लाख करोड़ रुपये का तक का नुकसान हो सकता है.
क्यों लगती है जंगलों में आग
1-इन घटनाओं के पीछे सबसे बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन, इंसानों के क्रिया-कलाप और आग से निपटने के लिए मजबूत ढांचे का अभाव है. जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान बढ़ रहा है. जिसकी वजह से वनस्पतियों में नमी का स्तर भी कम हो रहा है. इसके साथ ही बेमौसम चलने वाली लू से इनके पत्तों में रगड़ पैदा होती है और आग लग जा रही है. इसके अलावा अनियमित मानसून की वजह से जंगल काफी समय तक के लिए सूखे रहते हैं. साल 2023 का फरवरी का महीना सबसे ज्यादा गर्म था. जिससे मानसून के पहले वाली नमी एक तरह से खत्म हो गई थी.
2-एल-नीनो की घटनाएं में जंगल में आग लगने की प्रमुख वजह बन गई हैं. एल-नीने की वजह से बारिश कम होती है. जिससे जंगल सूख जाते हैं और आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. एल-नीनो के असर की वजह से साल 2024 में पूर्व और पूर्वोत्तर इलाके में 30 फीसदी और दक्षिण में 68 फीसदी कम बारिश का अनुमान किया गया था.
3- इंसानों का जंगली इलाकों में अतिक्रमण बढ़ गया है. खेती का रकबा बढ़ाने के लिए जंगल काटे जा रहे हैं. इस दौरान आग को लेकर थोड़ी सी लापरवाही ऐसी घटनाओं को बढ़ा रही हैं. दक्षिण भारत में कर्तन और दहन के चलते भी आग की घटनाएं हो रही हैं. इसमें पहले जंगलों को काटा जाता है फिर खर-पतवार में आग लगा दी जाती है. वहीं जिस तरह से इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास हो रहा है ये भी जंगल में आग लगाने की प्रमुख वजह बढ़ रही है.
4- जंगली इलाकों में पर्यटन की काफी संभावना होती है. लोग जंगल में पिकनिक मनाने जाते हैं. इस दौरान अपशिष्ट चीजों को खत्म करने के लिए आग लगाई जाती है. इस दौरान एक चिंगारी के बड़ी आग में तब्दील होने की आशंका बनी रहती है.
5- अग्निशमक केंद्रों की कमी भी ऐसी घटनाओं से निपटने में काफी भूमिका निभा रही हैं. साल 2019 में देश में सिर्फ 3,377 ही अग्निशमक केंद्र थे. जो कि घटनाओं के मुताबिक काफी कम हैं.
ज्वलनशील वनस्पतियों की बड़ी भूमिका
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के देवदार के पेड़ गाद से भरी नुकील पत्तियां गिराते हैं इनमें आग फैलने की आशंका सबसे अधिक रहती है. इसके अलावा चीड़ के पेड़ों से भी आग लगती है. वहीं भारत में कई वनों में बांस के पेड़ भी काफी संख्या में लगे हैं जो आग जल्दी से पकड़ लेते हैं.
लोगों में जागरुकता की भी कमी
भारत के बहुत से गांवों की आजीविका वनों पर टिकी है. ऐसे लोगों में जंगल में आग लगने की घटनाओं को लेकर जागरुकता नहीं है. जिम्मेदार अधिकारियों और आम जनता के बीच संवाद और समन्वय की भी कमी है. इसके अलावा उन्नत तकनीक का भी इस्तेमाल बहुत कम होता है.
जंगल में आग लगने का असर
जंगली आग से वनस्पति, वन्यजीवों और मिट्टी को भारी नुकसान होता है. ऐसी घटनाएं जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण का भी कारण बनते हैं. जंगली आग से इमारती लकड़ी, गैर-इमारती लकड़ी उत्पादों और पर्यटन को नुकसान होता है. खेती का नुकसान होने से लोगों के लिए रोटी का भी संकट पैदा हो जाता है.
जंगल की आग से निपटने के उपाय
भारत को जंगल की आग के खतरे से निपटने के लिए एक व्यापक तैयारी की जरूरत है.इसके लिए वन पंचायतों और संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से स्थानीय लोगों को सशक्त बनाया जा सकता है.
AI संचालित पूर्वानुमान मॉडल और वास्तविक काल उपग्रह निगरानी की तैनाती से आग की चपेट में जल्दी आने वाले इलाकों का पता लगाने में मदद मिल सकती है. एकल-फसल वृक्षारोपण के स्थान पर अग्निरोधी मूल प्रजातियों के वृक्षारोपण से भी आग लगने की घटनाओं को कम किया जा सकता है.
वन अधिकार अधिनियम (FRA) के दावों को मान्यता देना और उनमें तेज़ी लाना जनजातीय समुदायों को वनों का स्थायी प्रबंधन करने में सशक्त बनाया जा सकता है. जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को एकीकृत करना, जैसे कि सूखा झेलने वाली प्रजातियों का चयन करके उनके पारिस्थितिकी को बढ़ाया जा सकता है.
जंगली इलाको में खनन, सड़क विस्तार और जलविद्युत परियोजनाओं को सख्ती से रेग्युलेट किया जा सकता है. ज़िम्मेदार पर्यटन दिशानिर्देशों के माध्यम से इको-टूरिज़्म को विनियमित करने से वनों की सुरक्षा के साथ-साथ राजस्व भी इकट्ठा किया जा सकता है. ड्रोन का इस्तेमाल करके क्षरित वनों पर हवाई सीड बॉम्बिंग के लिये किया जा सकता है, जिससे जंगल को बढ़ाया जा सकता है.
Published at : 23 Feb 2025 08:27 AM (IST)
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आनंद कुमार
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