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IPO बाजार फिर होगा गुलजार! SEBI चेयरमैन Tuhin Kanta Pandey ने जताया भरोसा

2024 में शानदार प्रदर्शन के बाद, इस साल आईपीओ (IPO) गतिविधि थम गई है। फरवरी के मध्य से अब तक कोई भी मेनबोर्ड लिस्टिंग नहीं हुई है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन तुहिन कांत पांडे ने इसकी वजह अमेरिका की नीति (US Tariff) में बदलाव को बताया है। उनके अनुसार, इससे बाजार में अस्थिरता बढ़ी है और आर्थिक हालात को लेकर अनिश्चितता बनी है, जिस कारण कई कंपनियों ने अपने लिस्टिंग प्लान को टाल दिया है।

हालांकि पांडे को भरोसा है कि आने वाले समय में आईपीओ गतिविधियां दोबारा रफ्तार पकड़ेंगी।

खुशबू तिवारी, सामी मोदीक और विकास ढूट को दिए इंटरव्यू में पांडे ने बताया कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) और बाजार से जुड़े अन्य प्रतिभागियों के साथ संपर्क बढ़ाने के लिए सेबी (SEBI) लगातार प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि सेबी का मकसद नियमों के अनुपालन (compliance) की प्रक्रिया को आसान और स्पष्ट बनाना है।

आइए, जानते हैं सेबी चेयरमैन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए इंटरव्यू में क्या कहा-

नियमों में ढील को लेकर आगे क्या योजना है?

हमारे विभाग सभी संबंधित पक्षों से बातचीत कर रहे हैं और नियमों की समीक्षा के लिए रोडमैप तैयार कर रहे हैं। हमारा नजरिया व्यवहारिक है—जो चीजें पहले से ठीक तरीके से काम कर रही हैं, उन्हें सिर्फ बदलाव के लिए नहीं छेड़ा जाएगा। बदलाव का मकसद सुधार होना चाहिए। हमारा लक्ष्य नियमों की प्रभावशीलता बनाए रखते हुए अनुपालन की लागत को कम करना है। कोई यह नहीं कह रहा कि ट्रैफिक लाइट हटा दी जाएं, बल्कि उन्हें और स्मार्ट बनाया जाए, ताकि वे बेहतर ढंग से काम करें।

IPO और ब्लॉक डील्स पर आपका नजरिया क्या है?

2024 में भारत में रिकॉर्ड संख्या में IPO और डील्स हुई थीं। लेकिन पिछले दो महीनों से गतिविधि धीमी पड़ी है। इसकी बड़ी वजह अमेरिका की अनिश्चित नीतियां और वैश्विक अस्थिरता है। जब बड़े झटके आते हैं, तो ऐसे उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। लेकिन मैं सकारात्मक हूं कि आगे हालात सुधरेंगे। हमारे पास एक मजबूत IPO पाइपलाइन है और कंपनियां सही समय का इंतजार कर रही हैं, ताकि निवेशकों की मांग को लेकर स्पष्टता रहे।

अगर F&O ट्रेडिंग में गिरावट आती है तो 2025-26 के लिए तय किया गया STT कलेक्शन लक्ष्य कैसे पूरा होगा?

STT की कमाई बाजार की गतिविधियों से जुड़ी होती है, जैसे कि GST आर्थिक विकास से जुड़ा होता है। सरकार ट्रेडिंग वॉल्यूम को कृत्रिम रूप से नहीं घटाना चाहती। हमारा फोकस बाजार को ज्यादा व्यवस्थित और स्थिर बनाना है। जैसे कि अब हफ्ते में दो दिन एक्सपायरी होती है, लेकिन हम नहीं चाहते कि ट्रेडर सिर्फ एक्सपायरी के आखिरी 10 मिनट में सक्रिय हों, क्योंकि इससे बाजार को वास्तविक फायदा नहीं होता।

बाजार में हल्की टकराव की स्थिति: सेबी अधिकारी ने दी सफाई, कहा- हमारी व्यवस्था मजबूत और सुरक्षित

हाल ही में शेयर बाजार से जुड़ी कुछ संस्थाओं के बीच आपसी खींचतान की खबरें सामने आईं, लेकिन इस पर सेबी (SEBI) की ओर से सफाई दी गई है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमें अपने मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (MIIs) पर पूरा भरोसा है और हमारे पास ऐसी मजबूत व्यवस्था है, जिसकी मिसाल कम ही देशों में मिलती है।

उन्होंने बताया कि हमारे देश में दो स्टॉक एक्सचेंज, दो क्लीयरिंग कॉरपोरेशन और दो डिपॉजिटरीज़ का अच्छा नेटवर्क है। इनके अलावा रजिस्टार और ट्रांसफर एजेंट्स, कस्टोडियन और डिबेंचर ट्रस्टी जैसी संस्थाएं भी बाजार को सुचारु रूप से चलाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

बीते तीन-चार वर्षों में सेबी और बाजार से जुड़े पूरे इकोसिस्टम ने कई बड़े कदम उठाए हैं।

  • पहला, T+1 सेटलमेंट सिस्टम लागू किया गया, जो दुनियाभर में एक मिसाल है।
  • दूसरा, निवेशकों को डायरेक्ट पेआउट की सुविधा दी गई, जिससे ब्रोकर्स की गड़बड़ियों और करवी जैसे मामलों पर लगाम लगी है।

इन दोनों बदलावों से निवेशकों की सुरक्षा के लिए मजबूत आधार तैयार हुआ है।

इसके अलावा भारत की पेमेंट और सेटलमेंट व्यवस्था और मार्जिन जरूरतें सिंगापुर जैसे बाजारों से भी ज्यादा कड़ी हैं। सेटलमेंट गारंटी फंड भी मजबूत है, जिससे बाजार में उतार-चढ़ाव के वक्त अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है।

हालांकि, अधिकारी ने यह भी माना कि MIIs व्यावसायिक संस्थाएं हैं और उनमें प्रतिस्पर्धा होगी, लेकिन सेबी किसी भी ऐसी गतिविधि की इजाजत नहीं देगा जो बाजार की स्थिरता को नुकसान पहुंचाए।

क्या आप T+0 सिस्टम को लागू करने की योजना टाल रहे हैं?

T+0 को लेकर फिलहाल कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है, लेकिन इसका पायलट प्रोजेक्ट जारी रह सकता है। हमारा मानना है कि बाजार की गहराई और लिक्विडिटी भी उतनी ही जरूरी है। अलग-अलग टाइम जोन में निवेशकों को एक देश से दूसरे देश में फंड ट्रांसफर करने होते हैं, ऐसे में सिर्फ टेक्नोलॉजी की क्षमता दिखाना ही मकसद नहीं होना चाहिए।

इस समय जरूरी है कि पहले हम T+1 सिस्टम की सफलता को स्वीकारें और यह सुनिश्चित करें कि यह प्रक्रिया बिना रुकावट के चलती रहे।

FPIs के लिए SEBI की नियमों में ढील: KYC पर भी काम जारी

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के लिए अतिरिक्त खुलासों की सीमा को दोगुना कर दिया है। इसके साथ ही कुछ और ढील दिए जाने की संभावनाएं भी हैं।

SEBI के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विदेशी फंड्स के साथ संपर्क लगातार बढ़ाया जा रहा है। “मैं खुद अमेरिका जाने वाला हूं ताकि वहां के निवेशकों के साथ बातचीत को और बेहतर किया जा सके। भारत में भी हमने FPI आउटरीच सेल के ज़रिए पहुंच बढ़ाई है। बीते कुछ वर्षों में हम 2,000 से ज्यादा FPIs से संपर्क कर चुके हैं। हमने उनके अनुभव को बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसका असर ये हुआ है कि अब FPI रजिस्ट्रेशन का समय पहले से काफी कम हो गया है।”

KYC प्रक्रिया को लेकर क्या हो रहा है काम?

SEBI अधिकारी के मुताबिक, मार्केट इकोसिस्टम में एक बार KYC हो जाने के बाद दोबारा इसकी ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि सभी KYC रजिस्ट्रेशन एजेंसियों के बीच डेटा इंटरऑपरेबिलिटी (एक-दूसरे से जुड़ाव) है। उन्होंने कहा कि आदर्श रूप में SEBI और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की KYC प्रणाली को जोड़ देना चाहिए। इसके लिए एक सब-कमेटी काम कर रही है।

अधिकारी ने यह भी कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए बनाए गए कानून (PMLA) के कुछ नियमों में बदलाव ज़रूरी हैं। इनमें से एक सेट को पहले ही अपडेट किया जा चुका है। अब बाकी नियमों पर चर्चा हो रही है ताकि सभी संस्थाएं एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझ सकें।

उन्होंने बताया कि बुनियादी KYC सभी के लिए ज़रूरी होनी चाहिए, लेकिन अगर किसी खास केस में ज्यादा जानकारी चाहिए, तो उसके लिए उच्च स्तर की KYC की जा सकती है। हालांकि, इसे सभी पर लागू नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैं इस पर RBI गवर्नर से भी चर्चा करूंगा। यह एक अहम विषय है।”

अदाणी-हिंडनबर्ग मामले में सेबी जांच रिपोर्ट जारी करेगा? जांच की समयसीमा घटाने पर क्या स्थिति है?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी जांच प्रक्रियाओं में तय मानकों का पालन करता है और अदाणी मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन किया गया है। इस मामले में कुछ लोगों ने पुनर्विचार की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने उसे स्वीकार नहीं किया। अब SEBI आगे की कार्रवाई उसी तरह कर रहा है जैसे बाकी मामलों में करता है।

सेबी में बढ़ रहे सैटलमेंट केस, पुरानी जांचों की संख्या घट रही

SEBI के मुताबिक, अब लगभग 40% मामलों का समाधान सैटलमेंट के जरिए हो रहा है। साथ ही, दो साल से ज्यादा समय से लंबित मामलों की संख्या में भी कमी आई है। हालांकि कुछ जांचें जटिल होती हैं, जिनमें ज्यादा समय और संसाधन लगते हैं। खासकर जब मामला अंतरराष्ट्रीय हो, तो कई बार विदेशी रेगुलेटर से सूचना नहीं मिल पाती। ऐसे में SEBI को इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ सिक्योरिटीज कमिशंस (IOSCO) को सूचित करना पड़ता है कि अपेक्षित जानकारी नहीं मिली है।

SEBI में क्षमता निर्माण की जरूरत?

SEBI ने कहा है कि बढ़ते बाजार के मद्देनजर वह नई भर्ती कर रहा है और तकनीक का भी इस्तेमाल बढ़ा रहा है। हालांकि कुछ काम ऐसे हैं जो सिर्फ मानवीय सोच और अनुभव से ही किए जा सकते हैं।

कर्मचारियों की नाराजगी का मुद्दा सुलझा या नहीं?

SEBI ने आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से इनकार किया, लेकिन कहा कि उसके कर्मचारी पेशेवर, सक्षम और प्रेरित हैं।

एनएसई आईपीओ पर सेबी और एक्सचेंज के बीच मतभेद, समाधान के बाद ही आगे बढ़ेगा मामला

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के आईपीओ को लेकर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) और एक्सचेंज के बीच कई अहम मुद्दों पर लगातार बातचीत हो रही है। इस पर हाल ही में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जैसे ही कुछ अहम मसलों को सुलझा लिया जाएगा, आईपीओ की प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी।

उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर तीन से चार बड़े मसले हैं, जिनमें गवर्नेंस (प्रशासनिक ढांचे), टेक्नोलॉजी, चल रहे मुकदमे (litigation) और क्लियरिंग कॉरपोरेशन के ढांचे से जुड़े सवाल शामिल हैं। इन पर स्पष्ट दिशा तय हो जाने के बाद आईपीओ का रास्ता साफ हो सकता है।

मुकदमों पर ध्यान जरूरी, कुछ खत्म हुए, कुछ अभी भी लंबित

उन्होंने यह भी कहा कि मुकदमों का पहलू काफी अहम है। कुछ मामले खत्म हो चुके हैं, लेकिन कुछ अब भी लंबित हैं। इन सभी मुद्दों पर गहराई से काम करना जरूरी है ताकि पब्लिक इंटरस्ट में पारदर्शिता और स्पष्टता के साथ आगे बढ़ा जा सके।

फिनफ्लुएंसर्स के खिलाफ एक्शन जारी, भ्रामक कंटेंट पर होगी कड़ी नजर

वित्तीय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स (फिनफ्लुएंसर्स) द्वारा ऑनलाइन शेयर सलाह देने वाले कंटेंट को हटाए जाने पर उन्होंने कहा कि शुद्ध रूप से शैक्षणिक जानकारी पर आमतौर पर कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन जब कोई किसी खास शेयर पर सलाह देता है, रिटर्न की गारंटी देता है, या प्रमोटर्स के कहने पर शेयर की कीमतें बढ़ाने की कोशिश करता है, तो यह गंभीर मामला होता है।

कई बार फिनफ्लुएंसर्स के साथ मिलीभगत भी पाई जाती है, जो कि पूरी तरह से धोखाधड़ी है। ऐसे मामलों में कंटेंट को हटाना जरूरी हो जाता है। सेबी ने रजिस्टर्ड संस्थाओं के संघों के साथ मिलकर ऐसे मामलों को रोकने और निवेशकों को सुरक्षित रखने के लिए फ्रेमवर्क भी तैयार किया है।

सोशल मीडिया पर भ्रामक कंटेंट पर कार्रवाई के लिए और शक्तियों की जरूरत?

सेबी ने सरकार से ज्यादा शक्तियों की मांग की है या नहीं, इस पर उन्होंने कहा कि फिलहाल गृह मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय के साथ बातचीत चल रही है। हालांकि मौजूदा कानूनी ढांचे के तहत भी काफी कुछ किया जा सकता है।

लिस्टेड सरकारी कंपनियों को न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी की शर्त पूरी करने के लिए और समय मिल सकता है

कुछ सरकारी कंपनियों (PSUs) पहले ही सेबी की 25% न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी (Minimum Public Shareholding – MPS) की शर्त पूरी कर चुकी हैं। लेकिन कुछ कंपनियों के लिए यह लक्ष्य अभी भी हासिल नहीं हुआ है। ऐसे मामलों में जहां यह शर्त पूरी करना संभव नहीं है, उन कंपनियों को डीलिस्टिंग यानी शेयर बाजार से हटने पर विचार करना पड़ सकता है।

कुछ बैंकों ने पहले यह शर्त पूरी कर ली थी, लेकिन सरकार से मिले recapitalisation की वजह से उनका सार्वजनिक हिस्सेदारी का प्रतिशत घट गया। अब वे दोबारा इस शर्त को पूरा करने की दिशा में काम कर रहे हैं। हालांकि, ऐसे मामले बहुत कम हैं और ये कोई बड़ी चिंता की बात नहीं माने जा रहे हैं।

सेबी ने नए निवेश प्लेटफॉर्म SIFs की शुरुआत की है, आगे क्या बदलाव हो सकते हैं? क्या क्रिप्टोकरेंसी की इजाजत होगी?

अभी बाज़ार में Reits, InvITs, Small & Medium Reits और अब Specialised Investment Funds (SIFs) जैसे कई निवेश विकल्प मौजूद हैं। Alternative Investment Fund (AIF) क्षेत्र में यह विचार किया जा रहा है कि यदि कोई निवेशक एक खास आर्थिक क्षमता रखता है (जैसे accredited investors), तो उसे कुछ नियमों से छूट दी जा सकती है।

इस तरह के अनुभवी निवेशक अपने जोखिम खुद समझ सकते हैं, इसलिए उन पर कड़े नियम थोपने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा, energy futures जैसे नए उत्पादों पर भी काम चल रहा है।

जहां तक क्रिप्टोकरेंसी की बात है, यह पूरी तरह सरकार की नीति पर निर्भर करता है। अगर भविष्य में सरकार इसे ‘security’ की श्रेणी में लाती है, तभी सेबी इसकी निगरानी करेगा।

सेबी अपनी आय पर इनकम टैक्स नहीं देता लेकिन अपनी सेवाओं पर जीएसटी क्यों देता है?

इनकम टैक्स (I-T) और वस्तु एवं सेवा कर (GST) दो अलग-अलग कानून हैं। सेबी का कहना है कि वह वही करता है जो उसे कानूनन कहा गया है। इन दोनों में समानता लाना या नहीं लाना, यह पूरी तरह GST काउंसिल का फैसला होगा।

First Published - April 17, 2025 | 7:20 AM IST

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